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HTET CTET Meth Pedagogy Important Question Answers

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  1. छोटी कक्षाओं के लिए शिक्षण की उपयुक्त विधि – खेल मनोरंजन विधि
  2. रेखा गणित शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – विश्लेषण विधि
  3. बेलनाकार आकृति के शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन निगमन विधि
  4. नवीन प्रश्न को हल करने की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन विधि
  5. स्वयं खोज कर अपने आप सीखने की विधि – अनुसंधान विधि
  6. मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ विधि – खेल विधि
  7. ज्यामिति की समस्यायों को हल करने के लिए सर्वोत्तम विधि – विश्लेषण विधि
  8. सर्वाधिक खर्चीली विधि – प्रोजेक्ट विधि
  9. बीजगणित शिक्षण की सर्वाधिक उपयुक्त विधि – समीकरण विधि
  10. सूत्र रचना के लिए सर्वोत्तम विधि – आगमन विधि
  11. प्राथमिक स्तर पर थी गणित शिक्षण की सर्वोत्तम विधि – खेल विधि
  12. वैज्ञानिक आविष्कार को सर्वाधिक बढ़ावा देने वाली विधि – विश्लेषण विधि

गणित शिक्षण की विधियाँ : स्मरणीय तथ्य

  1. शिक्षण एक त्रि – ध्रुवी प्रक्रिया है जिसका प्रथम ध्रुव शिक्षण उद्देश्य, द्वितीय अधिगम तथा तृतीय मूल्यांकन है ।
  2. व्याख्यान विधि में शिक्षण का केन्द्र बिन्दु अध्यापक होता है, वही सक्रिय रहता है ।
  3. बड़ी कक्षाओं में जब किसी के जीवन परिचय या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित कराना है, वहाँ व्याख्यान विधि उत्तम है ।
  4. प्राथमिक स्तर पर थी गणित स्मृति केन्द्रित होना चाहिए जिसका आधार पुनरावृति होता हैं ।

गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य व अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन —-

  1. ज्ञान – छात्र गणित के तथ्यों, शब्दों, सूत्रों, सिद्धांतों, संकल्पनाओं, संकेत, आकृतियों तथा विधियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।

व्यवहारगत परिवर्तन –

  1. छात्र तथ्यों, परिभाषाएँ, सिद्धांतों आदि में त्रुटियों का पता लगाकर उनका सुधार करता हैं ।
  2. तथ्यों तथा सिद्धांतों के आधार पर साधारण निष्कर्ष निकालता हैं ।
  3. गणित की भाषा, संकेत, संख्याओं, आकृतियों आदि को भली भांति पहचानता एवं जानता हैं ।
  4. अवबोध — संकेत, संख्याओं, नियमों, परिभाषाओं आदि में अंतर तथा तुलना करना, तथ्यों तथा आकृतियों का वर्गीकरण करना सीखते हैं ।
  5. कुशलता — विधार्थी गणना करने, ज्यामिति की आकृतियों, रेखाचित्र खींचने मे, चार्ट आदि को पढ़ने में निपुणता प्राप्त कर सकेंगे । छात्र गणितीय गणनाओं को सरलता व शीघ्रता से कर सकेंगे । ज्यामितीय आकृतियों, लेखाचित्र, तालिकाओं, चार्टों आदि को पढ़ तथा खींच सकेंगे ।
  6. ज्ञानापयोग —
  7. छात्र ज्ञान और संकल्पनाओं का उपयोग समस्याओं को हल कर सकेंगे ।
  8. छात्र तथ्यों की उपयुक्तता तथा अनुपयुक्तता की जांच कर सकेगा
  9. नवीन परिस्थितियों में आने वाली समस्यायों को आत्मविश्वास के साथ हल कर सकेगा ।
  10. रूचि :–
  11. गणित की पहेलियों को हल कर सकेगा ।
  12. गणित संबंधी लेख लिख सकेगा ।
  13. गणित संबंधित सामग्री का अध्ययन करेगा ।
  14. गणित के क्लब में भाग ले सकेगा ।
  15. अभिरुचि :–
  16. विधार्थी गणित के अध्यापक को पसंद कर सकेगा ।
  17. गणित की परीक्षाओं को देने में आनन्द पा सकेगा ।
  18. गणित की विषय सामग्री के बारे में सहपाठियों से चर्चा कर सकेगा ।
  19. कमजोर विधार्थियों को सीखाने में मदद कर सकेगा ।
  20. सराहनात्मक (Appreciation objectives)
  21. छात्र दैनिक जीवन में गणित के महत्व एवं उपयोगिता की प्रशंसा कर सकेगा ।
  22. गणितज्ञों के जीवन में व्याप्त लगन एवं परिश्रम को श्रद्धा की दृष्टि से देख सकेगा ।

विधियाँ —-

समस्या समाधान विधि —

  1. गणित अध्यापन की यह प्राचीनतम विधि है ।
  2. अध्यापक इस विधि में विधार्थियों के समक्ष समस्यायों को प्रस्तुत करता हैं तथा विधार्थी सीखे हुए सिद्धांतों, प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या हल करते हैं ।

समस्या प्रस्तुत करने के नियम —

  1. समस्या बालक के जीवन से संबंधित हो ।
  2. उनमें दिए गए तथ्यों से बालक अपरिचित नहीं होने चाहिए ।
  3. समस्या की भाषा सरल व बोधगम्य होनी चाहिए ।
  4. समस्या का निर्माण करते समय बालकों की आयु एवं रूचियों का भी ध्यान रखना चाहिए ।
  5. समस्या लम्बी हो तो उसके दो – तीन भाग कर चाहिए ।
  6. नवीन समस्या को जीवन पर आधारित समस्याओं के आधार पर प्रस्तुत करना चाहिए ।

समस्या निवारण विधि के गुण –

  1. इस विधि से छात्रों में समस्या का विश्लेषण करने की योग्यता का विकास होता हैं ।
  2. इससे सही चिंतन तथा तर्क करने की आदत का विकास होता है ।
  3. उच्च गणित के अध्ययन में यह विधि सहायक हैं ।
  4. समस्या के द्वारा विधार्थियों को जीवन से संबंधित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं ।

समस्या समाधान विधि के दोष

  1. जीवन पर आधारित समस्याओं का निर्माण प्रत्येक अध्यापक के लिए संभव नहीं हैं ।
  2. बीज गणित तथा ज्यामिति ऐसे अनेक उप विषय हैं जिसमें जीवन से संबंधित समस्यायों का निर्माण संभव नही हैं

खेल विधि

  1. खेल पद्धति के प्रवर्तक हैनरी काल्डवैल कुक हैं । उन्होंने अपनी पुस्तक प्ले वे में इसकी उपयुक्तता अंग्रेजी शिक्षण हेतु बतायी हैं ।
  2. सबसे पहले महान शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल ने खेल के महत्व को स्वीकार करके शिक्षा को पूर्ण रूप से खेल केन्द्रित बनाने का प्रयत्न किया था ।
  3. फ्रोबेल ने इस बात पर जोर दिया कि विधार्थियों को संपूर्ण ज्ञान खेल – खेल में दिया जाना चाहिए ।

खेल में बालक की स्वाभाविक रूचि होती हैं ।

  1. गणित की शिक्षा देने के लिए खेल विधि का सबसे अच्छा उपयोग इंग्लैंड के शिक्षक हैनरी काल्डवैल कुक ने किया था ।

खेल विधि के गुण —

  1. मनोवैज्ञानिक विधि – खेल में बच्चें की स्वाभाविक रूचि होती है और वह खेल आत्मप्रेरणा से खेलता है । अतः इस विधि से पढ़ाई को बोझ नहीं समझता ।
  2. सर्वांगीण विकास — खेल में गणित संबंधी गणनाओं और नियमों का पूर्ण विकास होता है । इसके साथ साथ मानवीय मूल्यों का विकास भी होता हैं ।
  3. क्रियाशीलता – यह विधि करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
  4. सामाजिक दृष्टिकोण का विकास – इस विधि में पारस्परिक सहयोग से काम करने के कारण सामाजिकता का विकास होता हैं ।
  5. स्वतंत्रता का वातावरण – खेल में बालक स्वतंत्रतापूर्वक खुले ह्रदय व मस्तिष्क से भाग लेता हैं ।
  6. रूचिशील विधि – यह विधि गणित की निरसता को समाप्त कर देती हैं ।

खेल विधि के दोष –

  1. शारीरिक शिशिलता
  2. व्यवहार में कठिनाई
  3. मनोवैज्ञानिक विलक्षणता

आगमन विधि

  1. इस शिक्षा प्रणाली में उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियम का निर्धारण किया जाता है, को आगमन शिक्षण विधि कहते हैं 2. यह विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर शिक्षा सूत्र पर आधारित है ।
  2. इसमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ा जाता है ।

उदाहरण स्थूल है, नियम सूक्ष्म ।

आगमन विधि के गुण —

  1. यह शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है । इससे नवीन ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है और यह अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं ।
  2. इस विधि में विशेष से सामान्य की ओर और स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर होने के कारण यह विधि मनोवैज्ञानिक हैं ।
  3. नियमों को स्वयं निकाल सकने पर छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता हैं ।
  4. इस विधि में रटने की प्रवृत्ति को जन्म नहीं मिलता हैं । अतः छात्रों को स्मरण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता है ।
  5. यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी और रोचक हैं ।

आगमन विधि के दोष —

  1. यह विधि बड़ी कक्षाओं और सरल अंशों को पढ़ाने के लिए उपयुक्त हैं ।
  2. आजकल की कक्षा पद्धति के अनुकूल नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर देना पड़ता है ।
  3. छात्र और अध्यापक दोनों को ही अधिक परिश्रम करना पड़ता है ।

निगमन विधि

  1. इस विधि में अध्यापक किसी नियम का सीधे ढ़ंग से उल्लेख करके उस पर आधारित प्रश्नों को हल करने और उदाहरणों पर नियमों को लागू करने का प्रयत्न करता हैं ।
  2. इस विधि में छात्र नियम स्वयं नही निकालते, वे नियम उनकों रटा दिए जाते हैं और कुछ प्रश्नों को हल करके दिखा दिया जाता है ।

निगमन विधि के गुण —

  1. बड़ी कक्षाओं में तथा छोटी कक्षाओं में भी किसी प्रकरण के कठिन अंशों को पढ़ाने के लिए यह विधि सर्वोत्तम है ।
  2. यह विधि कक्षा पद्धति के लिए सबसे अधिक उपयोगी है ।
  3. ज्ञान की प्राप्ति काफी तीव्र होती है । कम समय में ही अधिक ज्ञान दिया जाता है ।
  4. ऊँची कक्षाओं में इस विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे नियम को तुरंत समझ लेते है ।
  5. इस विधि में छात्र तथा शिक्षक दोनों को ही कम परिश्रम करना पड़ता है ।
  6. इस विधि से छात्रों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है ।

निगमन विधि के दोष —

  1. निगमन विधि सूक्ष्म से स्थूल की ओर बढ़ने के कारण शिक्षा सिद्धांत के प्रतिकूल है । यह विधि अमनोवैज्ञानिक है ।
  2. इस विधि रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं ।
  3. इसके माध्यम से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा नही होता ।
  4. नियम के लिए इस पद्धति में दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है, इसलिएइस विधि से सीखने में न आनंद मिलता है और न ही आत्मविश्वास बढ़ता हैं ।

आगमन तथा निगमन विधि में तुलनात्मक निष्कर्ष —

  1. आगमन विधि निगमन विधि से अधिक मनोवैज्ञानिक हैं ।
  2. प्रारंभिक अवस्था में आगमन विधि अधिक उपयुक्त है परन्तु उच्च कक्षाओं में निगमन विधि अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसकी सहायता से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं ।

विश्लेषण विधि (Analytic Method) —

  1. विश्लेषण शब्द का अर्थ है – किसी समस्या को हल करने के लिए उसे टुकड़ों बांटना, इकट्ठी की गई वस्तु के भागों को अलग – अलग करके उनका परीक्षण करना विश्लेषण है ।
  2. यह एक अनुसंधान की विधि है जिसमें जटिल से सरल, अज्ञात से ज्ञात तथा निष्कर्ष से अनुमान की ओर बढ़ते हैं ।
  3. इस विधि में छात्र में तर्कशक्ति तथा सही ढंग से निर्णय लेने की आदत का विकास होता हैं ।

उदाहरण :-

एक विधार्थी के गणित, विधान तथा अंग्रेजी के अंको का औसत 15 था । संस्कृत, हिन्दी तथा सामाजिक के अंको का औसत 30 था तो बताओ 6 विषयों के अंको का औसत क्या था ?

विश्लेषण की प्रक्रिया तथा संभावित उत्तर —

  1. प्रश्न में क्या दिया हैं ?

गणित, विज्ञान तथा अंग्रेजी के अंकों का औसत = 15

  1. और क्या दिया है ?

बाकि तीन विषयों का औसत = 30

  1. क्या ज्ञात करना है ?

6 विषयों के अंकों का औसत ?

  1. सभी विषयों का औसत कैसे निकाल सकते हैं ?

जब सभी विषयों के अंकों का योग ज्ञात हो ।

  1. पहले तीन विषयों के अंकों का योग कब ज्ञात हो सकता है ?

जब उनका औसत ज्ञात हो ।

  1. अगले तीन विषयों का योग कब ज्ञात किया जा सकता हैं ?

जब उनका औसत ज्ञात हो ।

संश्लेषण विधि

  1. संश्लेषण विधि विश्लेषण विधि के बिल्कुल विपरीत हैं ।
  2. संश्लेषण का अर्थ है उस वस्तु को जिसको छोटे – छोटे टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया है, उसे पुन: एकत्रित कर देना है ।
  3. इस विधि में किसी समस्या का हल एकत्रित करनेके लिए उस समस्या से संबंधित पूर्व ज्ञात सूचनाओं को एक साथ मिलाकर समस्या को हल करने का प्रयत्न किया जाता है ।

विश्लेषण – संश्लेषण विधि —

  1. दोनों विधियाँ एक दूसरे की पूरक हैं ।
  2. जो शिक्षक विश्लेषण द्वारा पहले समस्या का विश्लेषण कर छात्रों को समस्या के हल ढूंढने की अंतदृष्टि पैदा करता है, वही शिक्षक गणित का शिक्षण सही अर्थ में करता हैं ।
  3. “संश्लेषण विधि द्वारा सूखी घास से तिनका निकाला जाता है किंतु विश्लेषण विधि से तिनका स्वयं घास से बाहर निकल आया है ।” – प्रोफेसर यंग । अर्थात संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर होते हैं, और विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर ।

योजना विधि

  1. इस विधि का प्रयोग सबसे पहले शिक्षाशास्त्री किलपैट्रिक ने किया जो प्रयोजनवादी शिक्षाशास्त्री थे ।
  2. उनके अनुसार शिक्षा सप्रयोजन होनी चाहिए तथा अनुभवों द्वारा सीखने को प्रधानता दी जानी चाहिए ।

योजना विधि के सिद्धांत —

  1. समस्या उत्पन्न करना
  2. कार्य चुनना
  3. योजना बनाना
  4. योजना कार्यान्वयन
  5. कार्य का निर्णय
  6. कार्य का लेखा

योजना विधि के गुण —

  1. बालकों में निरिक्षण, तर्क, सोचने और सहज से किसी भी परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता हैं ।
  2. क्रियात्मक तथा सृजनात्मक शक्ति का विकास होता हैं ।

योजना विधि के दोष -इस विधि से सभी पाठों को नही पढ़ाया जा सकता ।

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