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गणित शिक्षण की विधियाँ
- छोटी कक्षाओं के लिए गणित शिक्षण की उपयुक्त विधि – खेल मनोरंजन विधि
- रेखा गणित शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – विश्लेषण विधि
- बेलनाकार आकृति के शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन निगमन विधि
- नवीन प्रश्न को हल करने की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन विधि
- स्वयं खोज कर अपने आप सीखने की विधि – अनुसंधान विधि
- मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ विधि – खेल विधि
- ज्यामिति की समस्यायों को हल करने के लिए सर्वोत्तम विधि – विश्लेषण विधि
- सर्वाधिक खर्चीली विधि – प्रोजेक्ट विधि
- बीजगणित शिक्षण की सर्वाधिक उपयुक्त विधि – समीकरण विधि
- सूत्र रचना के लिए सर्वोत्तम विधि – आगमन विधि
- प्राथमिक स्तर पर थी गणित शिक्षण की सर्वोत्तम विधि – खेल विधि
- वैज्ञानिक आविष्कार को सर्वाधिक बढ़ावा देने वाली विधि – विश्लेषण विधि
गणित शिक्षण की विधियाँ : स्मरणीय तथ्य
गणित शिक्षण की विधियाँ : स्मरणीय तथ्य
- शिक्षण एक त्रि – ध्रुवी प्रक्रिया है जिसका प्रथम ध्रुव शिक्षण उद्देश्य, द्वितीय अधिगम तथा तृतीय मूल्यांकन है ।
- व्याख्यान विधि में शिक्षण का केन्द्र बिन्दु अध्यापक होता है, वही सक्रिय रहता है ।
- बड़ी कक्षाओं में जब किसी के जीवन परिचय या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित कराना है, वहाँ व्याख्यान विधि उत्तम है ।
- प्राथमिक स्तर पर थी गणित स्मृति केन्द्रित होना चाहिए जिसका आधार पुनरावृति होता हैं ।
गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य व अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन —-
- ज्ञान – छात्र गणित के तथ्यों, शब्दों, सूत्रों, सिद्धांतों, संकल्पनाओं, संकेत, आकृतियों तथा विधियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
व्यवहारगत परिवर्तन –
- छात्र तथ्यों, परिभाषाएँ, सिद्धांतों आदि में त्रुटियों का पता लगाकर उनका सुधार करता हैं ।
- तथ्यों तथा सिद्धांतों के आधार पर साधारण निष्कर्ष निकालता हैं ।
- गणित की भाषा, संकेत, संख्याओं, आकृतियों आदि को भली भांति पहचानता एवं जानता हैं ।
- अवबोध — संकेत, संख्याओं, नियमों, परिभाषाओं आदि में अंतर तथा तुलना करना, तथ्यों तथा आकृतियों का वर्गीकरण करना सीखते हैं ।
- कुशलता — विधार्थी गणना करने, ज्यामिति की आकृतियों, रेखाचित्र खींचने मे, चार्ट आदि को पढ़ने में निपुणता प्राप्त कर सकेंगे । छात्र गणितीय गणनाओं को सरलता व शीघ्रता से कर सकेंगे । ज्यामितीय आकृतियों, लेखाचित्र, तालिकाओं, चार्टों आदि को पढ़ तथा खींच सकेंगे ।
- ज्ञानापयोग —
- छात्र ज्ञान और संकल्पनाओं का उपयोग समस्याओं को हल कर सकेंगे ।
- छात्र तथ्यों की उपयुक्तता तथा अनुपयुक्तता की जांच कर सकेगा
- नवीन परिस्थितियों में आने वाली समस्यायों को आत्मविश्वास के साथ हल कर सकेगा ।
- रूचि :–
- गणित की पहेलियों को हल कर सकेगा ।
- गणित संबंधी लेख लिख सकेगा ।
- गणित संबंधित सामग्री का अध्ययन करेगा ।
- गणित के क्लब में भाग ले सकेगा ।
- अभिरुचि :–
- विधार्थी गणित के अध्यापक को पसंद कर सकेगा ।
- गणित की परीक्षाओं को देने में आनन्द पा सकेगा ।
- गणित की विषय सामग्री के बारे में सहपाठियों से चर्चा कर सकेगा ।
- कमजोर विधार्थियों को सीखाने में मदद कर सकेगा ।
- सराहनात्मक (Appreciation objectives)
- छात्र दैनिक जीवन में गणित के महत्व एवं उपयोगिता की प्रशंसा कर सकेगा ।
- गणितज्ञों के जीवन में व्याप्त लगन एवं परिश्रम को श्रद्धा की दृष्टि से देख सकेगा ।
विधियाँ —-
समस्या समाधान विधि —
- गणित अध्यापन की यह प्राचीनतम विधि है ।
- अध्यापक इस विधि में विधार्थियों के समक्ष समस्यायों को प्रस्तुत करता हैं तथा विधार्थी सीखे हुए सिद्धांतों, प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या हल करते हैं ।
समस्या प्रस्तुत करने के नियम —
- समस्या बालक के जीवन से संबंधित हो ।
- उनमें दिए गए तथ्यों से बालक अपरिचित नहीं होने चाहिए ।
- समस्या की भाषा सरल व बोधगम्य होनी चाहिए ।
- समस्या का निर्माण करते समय बालकों की आयु एवं रूचियों का भी ध्यान रखना चाहिए ।
- समस्या लम्बी हो तो उसके दो – तीन भाग कर चाहिए ।
- नवीन समस्या को जीवन पर आधारित समस्याओं के आधार पर प्रस्तुत करना चाहिए ।
समस्या निवारण विधि के गुण –
- इस विधि से छात्रों में समस्या का विश्लेषण करने की योग्यता का विकास होता हैं ।
- इससे सही चिंतन तथा तर्क करने की आदत का विकास होता है ।
- उच्च गणित के अध्ययन में यह विधि सहायक हैं ।
- समस्या के द्वारा विधार्थियों को जीवन से संबंधित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं ।
समस्या समाधान विधि के दोष
- जीवन पर आधारित समस्याओं का निर्माण प्रत्येक अध्यापक के लिए संभव नहीं हैं ।
- बीज गणित तथा ज्यामिति ऐसे अनेक उप विषय हैं जिसमें जीवन से संबंधित समस्यायों का निर्माण संभव नही हैं