Indian Geography GK Questions
Indian Geography GK Questions for HTET/CTET/HSSC/SSC exams. GK for HTET/HTET Quizs, Haryana GK Questions for HTET/CTET/HSSC exams, Current GK Questions, GK Questions for CTET, HTET,HSSC. Haryana GK Questions for SSC etc. Indian Geography GK Questions for REET exams, NET exams other exams. Indian Geography GK Questions for HTET/CTET/HSSC/SSC exams. GK for HTET/HTET Quizs, Haryana GK Questions for HTET/CTET/HSSC exams, Current GK Questions, GK Questions for CTET, HTET,HSSC.
हिमालय श्रेणियाँ भारत के लिए निम्न दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं
- सामरिक महत्व – एक भौतिक बाधा के रूप में हिमालय भारत-चीन के मध्य एक प्राकृतिक सीमा प्रदान करता है ।
- जलवायु महत्व – ग्रीष्मकाल में हिमालय दक्षिणी-पश्चिमी जलवाष्प-युक्त मानसूनी हवाओं को रोककर देश में पर्याप्त वर्षा करता है । पुनः शीतकाल में साइबेरिया की ठंडी हवाओं को रोक कर यह देश को अपेक्षाकृत गर्म रखता है । यही कारण है कि यद्यपि देश का अधिकांश भाग कर्क रेखा के उत्तर अर्थात् शीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित है किन्तु इस जलवायु उपोष्ण या उष्णकटिबन्धीय है ।_
- आर्थिक महत्व – हिमालय निम्न रूपों में आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है
(i). शंक्वाकार वन तथा उनसे औद्योगिक मुलायम लकड़ी की प्राप्ति ।
(ii). पशुचारण के लिए जम्मू-कश्मीर में मर्ग तथा उत्तर प्रदेश हिमालय में बुग्याल एवं पयाल जैसे विस्तृत घास के क्षेत्र हैं ।
(iii) विभिन्न खनिजों, जैसे-चूनापत्थर, स्लेट, नमक-चट्टान तथा कोयला की प्राप्ति ।
(iv)चाय के बागों तथा फलोद्यान के लिए ढ़लुआ जमीन की उपलब्धता । ग्रीष्मकाल में गेहूँ, आलू तथा मक्का जैसी फसलों का सीढ़ीनुमा खेतों पर उत्पादन ।
(v) पेय, सिंचाई एवं औद्योगिक उद्देश्यों हेतु मीठे जल की नदियाँ, जो हिमनद-पूरित तथा सतत् बहती हैं ।
(vi) गंगा के मैदान में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का निक्षेप ।
(vii) विभिन्न पर्वतीय पर्यटक स्थल, जैसे-श्रीनगर, शिमला, मसूरी, नैनीताल, अल्मोड़ा तथा विभिन्न धार्मिक केन्द्रों, जैसे – बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि की स्थिति ।
(viii) जलविद्युत परियोजनाओं; जैसे – भाखड़ा-नांगल, पार्वती तथा पोंग (हिमाचल प्रदेश) दुलहस्ती तथा किशनगंगा (जम्मू-कश्मीर) टिहरी जलविद्युत परियोजना (उत्तरांचल प्रदेश) आदि की स्थिति ।
(ix) विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों की प्राप्ति ।
(ख) हिमालय
हिमालय श्रृंखला सर्वाधिक लंबी तथा तीन समांतर श्रृंखलाओं का क्षेत्र है । इसका फैलाव सिंधु नदी के गार्ज से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी के गार्ज तक है (2600 कि.मी.) । इनकी तीन समांतर श्रृंखलाओं में हिमाद्री श्रृंखला (आन्तरिक श्रृंखला या महान हिमालय श्रृंखला) सबसे उत्तर में तथा ‘शिवालिक श्रृंखला’ दक्षिण में तथा इस दोनों के मध्य ‘लघु हिमालय श्रृंखला स्थित है । इन पर्वतों का विस्तार धनुष की आकृति में है
प्लेट विवत्र्तनीकि-सिद्धान्त के अनुसार भारतीय प्लेट का दबाव उत्तर तथा उत्तर-पूर्व में अधिक होने के कारण नेपाल तथा असम हिमालय में फैलाव कम हुआ, किन्तु ऊँचाई अधिक हो गई । दक्षिण से अधिक दबाव के कारण ही दक्षिणी ढ़ाल अधिक तीव्र है ।
(1) महान हिमालय
इन श्रृंखलाओं के मध्य कई अंतरपर्वतीय घाटी भी स्थित हैं जैसे – महान हिमालय और लघु हिमालय के बीच कमश्ीर की घाटी, लाहुल स्पिति की घाटी तथा फूलों की घाटी है । महान हिमालय से एक श्रृंखला निकलकर तिब्बत की तरफ जाती है । यह जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में स्थित है, जो जास्कर श्रृंखला के नाम से जानी जाती है । यही श्रृंखला आगे बढ़ने पर कैलाश पर्वत के नाम से जाना जाता है ।
महान हिमालय की औसत ऊँचाई 6000 मी. है । इसकी सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट (सागर माथा) नेपाल में हैं जिसकी ऊँचाई 8850 मीटर है । भारत में अवस्थित शिखरों में कंचनजंगा सर्वोच्च है, (सिक्किम) जिसकी ऊँचाई 8548 मी. है । लघु हिमालय की औसत ऊँचाई 1000-4500 मी. है । महान हिमालय की सभी चोटियाँ हिम रेखा के ऊपर अवस्थित हैं ।
(2) शिवालिक हिमालय –
शिवालिक हिमालय की औसत ऊँचाई 600-1500 मी. के बीच है । ये कभी भी हिमाच्छादित नहीं होते। जम्मु-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में इसकी औसत चैड़ाई 50 कि.मी. है, जबकि अरूणाचल प्रदेश में यह 10-15 कि.मी. चैड़ा है । कई जगह पर ये अनुपस्थित भी है, अर्थात् ये श्रृंखला के रूप में नहीं पाये जाते ।
(3) लघु हिमालय –
लघु हिमालय के ढ़ालों पर घास के छोटे-छोटे मैदान पाए जाते हैं, जिन्हें कश्मीर में ‘मर्ग’ तथा उत्तरांचल में ‘बुग्याल’ या ‘पयार’ कहते हैं । लघु हिमालय क्षेत्र में चूना पत्थर पाये जाने के कारण कई विशिष्ट स्थलाकृतियों का विकास हुआ है । ये स्थलाकृतियाँ मुख्यतः जम्मु, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में अवस्थित हैं । कुमाऊँ हिमालय का सहस्त्रधारा इसका सुंदर उदाहरण है ।
हिमालय की श्रृंखलाओं में कई दर्रे भी पाये जाते हैं । ऐतिहासिक कारणों से ये दर्रे व्यापार और देशाटन के मार्ग रहे हैं । इनका विकास मुख्यतः दो प्रक्रियाओं से हुआ है । प्रथमतः नदी अपरदन प्रक्रिया से, जैसे-सतलज नदी के अपरदन से हिमाद्री हिमालय में शिपकिला दर्रे का तथा तिस्ता के अपरदन से नाथुला दर्रे का निर्माण हुआ है । हिमानी के अपरदन से अधिक ऊँचाई के दर्रे विकसित हुए, जैसे-कुमाऊँ हिमालय का नीति दर्रा पूर्व के हिमानी अपरदन का परिणाम है । ऐसे दर्रों को ‘कॉल ‘col’ कहा गया है।
उत्तर का पर्वतीय क्षेत्र करीब 5 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला हुआ है । भू-गर्भिक दृष्टि से इन नवीन पर्वतीय श्रृंखलाओं की उत्पत्ति ‘अल्पाइन भूसंचलन’ का परिणाम है, जो नवजीवकल्प (कैनियोजोइक) में परिघटित हुआ था । चूंकि पर्वत श्रृंखलाएं नवीन हैं, इसलिए सापेक्षिक ऊँचाई अधिक है और अपरदन की क्रिया स्वभाविक रूप से तीव्र होती है । यही कारण है कि यहाँ गहरी घाटियाँ और अनेक पर्वतीय अपरदित स्थालाकृतियाँ पाई जाती है ।
स्थलाकृतिक विशेषताओं के आधार पर इस क्षेत्र को पुनःतीन भागों में बाँटा जाता हैं –
(क) ट्रांस हिमालय,
(ख) हिमालय और,
(ग) पूर्वांचल हिमालय ।
(क) ट्रांस/तिब्बत हिमालय
यह ‘महान हिमालय’ के उत्तर में उसके समानान्तर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैला हुआ है । चूंकि इसका अधिकांश भाग तिब्बत में है, इसलिए इसे – ‘तिब्बत हिमालय’ भी कहते हैं । इनमें अनेक पर्वत-श्रेणियाँ हैं, जिनमें मुख्य हैं –
- जास्कर श्रेणी.
- लद्दाख श्रेणी.
- काराकोरम श्रेणी और
- कैलाश श्रेणी ।
- जास्कर श्रेणी – यह 800 पूर्वी देशान्तर पर महान हिमालय से अलग होती है । इसकी औसत ऊँचाई 600 मी. है । जास्कर श्रेणी पर ही बुंजी के निकट सिन्धु नदी का गार्ज है ।
- लद्दाख श्रेणी – यह 300 कि.मी. लंबी तथा 5,800 मीटर ऊँची है । यह जास्कर के समानान्तर फैेली हुई है ।
- काराकोरम श्रेणी – यह लद्दाख श्रेणी के उत्तर में भारत की सर्वाधिक उत्तरी श्रृंखला है । यह ऊँची चोटियों तथा हिमनदियों के लिए विख्यात है । इसकी प्रमुख चोटियाँ गॉडविन आस्टिन/ज्ञध्2 (8,600 मी.), हिडन (8,068 मी.) तथा गाशेर ब्रुम (8,035मी.) है । ज्ञ2ए चोटी भारत की सबसे ऊँची तथा विश्व की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है । आज इस श्रेणी का अधिकांश भाग पाक अधिकृत तथा चीन अधिकृत कश्मीर में है । इन श्रृंखलाओं में जीवाश्मरहित भूपटलीय चट्टानों की प्रधानता है ।
- कैलाश श्रेणी – यह लद्दाख श्रेणी तथा काराकोरम श्रेणी के पूर्व में मुख्यतः तिब्बत में स्थित है । भारत की बड़ी-बड़ी नदियों का उद्गम इसी क्षेत्र में स्थित है ।
इकाई – I भारत का भूआकृतिक वर्गीकरण
(Physiographic Division of India)
भारत की भू-आकृतिक (Relief) विशेषताओं में अत्यधिक विविधता पाई जाती है । इसकी संरचना अत्यन्त जटिल है । यहीं सभी कल्प और काल की संरचना में पायी जाती हैं । यहाँ एक ओर उत्तर में नवीन गगनचुम्बी पवर्तमालाएँ हैं, तो दूसरी ओर दक्षिण में अतिप्राचीन कठोर चट्टानों वाले पठार इन नवीन पर्वत एवं प्राचीन पठार के मध्य ‘विशाल समतल मैदान’ है, जो इसकी धरातलीय विशेषताओं में एक नया आयाम जोड़ देता ह_ै ।
भारत के कुल क्षेत्रफल का 10.7 प्रतिशत भाग पर्वतीय, 18.6 प्रतिशत भाग पहाड़ी, 27.7_ प्रतिशत भाग पठारी तथा शेष 43 प्रतिशत भाग मैदानी है_ ।_ संक्षेप में स्थलाकृतिक विशेषताओं की दृष्टि से हम भारत को चार प्रमुख प्रदेशों में बाँट सकते हैं ।_
- उत्तर का पर्वतीय क्षेत्र ।
- प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र ।
- उत्तर का वृहत मैदान ।
- तटीय मैदान और द्वीप-समूह